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“आदिपुरुष” विवाद: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सेंसर बोर्ड और मेकर्स को फटकार लगाई

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फिल्म “आदिपुरुष” (Adipurush) के डायलॉग्स को लेकर विवाद उठा हुआ है, और इस मुद्दे पर अधिवक्ता कुलदीप तिवारी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दर्ज करवाई थी। लखनऊ की बेंच में 26 जून को सुनवाई हुई, जिसके बाद हाई कोर्ट बेंच ने सेंसर बोर्ड और फिल्म के निर्माताओं को आलोचना की।

सोमवार को लखनऊ में जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस श्रीप्रकाश सिंह की डिवीजन बेंच ने सुनवाई की। वरिष्ठ अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने फिल्म में दिखाए गए विवादास्पद तथ्यों और संवाद के बारे में जानकारी दी। सेंसर बोर्ड की ओर से अधिवक्ता अश्विनी सिंह से सवाल पूछा गया कि सेंसर बोर्ड की कार्यप्रणाली क्या होती है? कोर्ट ने कहा कि सिनेमा समाज का दर्पण होता है और आने वाली पीढ़ियों को क्या सिखाना चाहते हैं?

कोर्ट ने यह भी दावा किया कि सिर्फ रामायण ही नहीं, बल्कि पवित्र कुरान, गुरु ग्रन्थ साहिब और गीता जी जैसे धार्मिक ग्रंथों को भी कम से कम बख्श देना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जो कुछ सेंसर बोर्ड करता है, वही तो हो रहा है, लेकिन बाकी काम जो किया जा रहा है, वह करना चाहिए।

इसके अलावा, कोर्ट ने फिल्म के प्रोड्यूसर और निर्देशकों के बगैर सुनवाई करते हुए नाराजगी जताई। वरिष्ठ अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने सेंसर बोर्ड की तरफ से अभी तक उत्तर प्राप्त नहीं होने पर भी आपत्ति जताई। कोर्ट को फिल्म के विवादास्पद तथ्यों के बारे में जागरूक कराया गया।

फिल्म “आदिपुरुष” का रिलीज 16 जून को हुआ था और दर्शकों ने इसे उत्साह से स्वागत किया था। ओपनिंग वीकेंड में फिल्म ने शानदार कलेक्शन किया है, लेकिन इसके साथ ही उसे विरोध का सामना करना पड़ा है।

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अदिपुरुष के विवाद: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सेंसर बोर्ड और मेकर्स को फटकार लगाई

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नई दिल्ली, जेएनएन। फिल्म “आदिपुरुष” (Adipurush) के डायलॉग्स को लेकर विवाद देश भर में फैल गया है। हाल ही में, इस विवाद पर अधिवक्ता कुलदीप तिवारी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दर्ज करवाई थी, और 26 जून को सुनवाई हुई। अब हाई कोर्ट बेंच ने इस मामले में सेंसर बोर्ड और फिल्म मेकर्स को जमकर फटकार लगाई है।

लखनऊ में सोमवार को, जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस श्रीप्रकाश सिंह की डिवीजन बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। याचिका को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को फिल्म में दिखाए गए आपत्तिजनक तथ्यों और संवाद के बारे में जानकारी दी। सेंसर बोर्ड की ओर से पेश किए गए अधिवक्ता अश्विनी सिंह से कोर्ट ने पूछा कि सेंसर बोर्ड क्या करता है? कोर्ट ने जवाब में कहा कि सिनेमा समाज का दर्पण होता है .

कोर्ट ने इस विवादित मामले में सेंसर बोर्ड की ज़िम्मेदारियों को लेकर गंभीरता से सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि सेंसर बोर्ड को यह समझना चाहिए कि उनका काम सिर्फ रामायण ही नहीं है, बल्कि पवित्र कुरान, गुरु ग्रन्थ साहिब और गीता जी जैसे धार्मिक ग्रंथों को भी सम्मान और संरक्षण का हक़ है। उन्होंने सेंसर बोर्ड को यह सलाह दी कि वे इस्लामी, सिख और हिंदू धर्म के ग्रंथों को उचित सम्मान दें और विवादास्पद सामग्री या तथ्यों के मामले में संवेदनशीलता बरतें।

इसके अलावा, कोर्ट ने फिल्म के प्रोड्यूसर और निर्माताओं को भी नाराजगी जताई है। वरिष्ठ अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने सेंसर बोर्ड द्वारा अभी तक जवाब नहीं दाखिल किए जाने के साथ ही उन्हें आपत्तिजनक तथ्यों से अवगत कराया है। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई को 27 जून को निर्धारित किया है।

फिल्म “आदिपुरुष” में अदिपुरुष का अभिनय: फिल्म मेकर्स की पकड़ और प्रतिक्रिया

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फिल्म “आदिपुरुष” में अदिपुरुष का अभिनय विवादस्पद हुआ है और इससे फिल्म मेकर्स को भी बड़ी पकड़ महसूस हो रही है। फिल्म में दिखाए गए आपत्तिजनक संवाद, गतिविधियां और किरदारों की प्रस्तुति ने विभिन्न सामाजिक मंचों पर विवादों को उत्पन्न किया है। इसके परिणामस्वरूप, फिल्म मेकर्स ने लोगों के आपत्तिजनक प्रतिक्रियाओं का सामना किया है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी इस मामले पर ध्यान दिया है और सेंसर बोर्ड और मेकर्स को फटकार लगाई है। कोर्ट ने सेंसर बोर्ड की जिम्मेदारियों पर सवाल उठाए हैं और उन्हें समझाया है कि उनका काम सिर्फ रामायण ही नहीं है, धार्मिक ग्रंथों को भी सम्मान देना चाहिए। फिल्म के प्रोड्यूसर और निर्माताओं को भी कोर्ट ने नाराजगी जताई है और जवाबदेही की मांग की है।

इस विवाद के बीच, फिल्म के मेकर्स ने अपनी पकड़ दर्शाई है और अपनी प्रतिक्रिया जताई है। हालांकि, इसके बावजूद विवाद जारी है

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फिल्म “आदिपुरुष” में अदिपुरुष का अभिनय विवादस्पद रहा है और इससे फिल्म मेकर्स की पकड़ मजबूत हुई है। मेकर्स ने विवाद के बीच अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए विभिन्न कदम उठाए हैं।

एक तरफ, फिल्म मेकर्स ने विवादों का सामना करते हुए अपने दृश्यों और संवादों की बदलाव की घोषणा की है। वे कह रहे हैं कि यह फिल्म एक कला रूपांतरण है और इसका उद्देश्य धार्मिक ग्रंथों का सम्मान करना है, न कि आपत्ति उत्पन्न करना। वे अपने कलाकारों और क्रू के लिए भी खुदरा की गई आपत्तिजनक मामलों का जवाब दे रहे हैं।

दूसरी तरफ, मेकर्स ने फिल्म को राष्ट्रीय पौराणिक कथा के साथ एक अंतर्राष्ट्रीय महत्वपूर्णता के रूप में प्रमोट किया है। उनका दावा है कि फिल्म का लक्ष्य एक भारतीय मानसिकता को प्रदर्शित करना है और अदिपुरुष का चरित्र लोगों को महानता की ओर प्रेरित करना है।

प्रतिक्रिया और अपील को लेकर बड़ा समर्थन: फिल्म “आदिपुरुष” विवाद

फिल्म “आदिपुरुष” के विवाद के समय, कई समर्थकों ने इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया दी और फिल्म मेकर्स को समर्थन दिया। इस विवाद में कई लोगों ने फिल्म के विरोध में अपनी बात रखी है, लेकिन इसके साथ ही कई लोगों ने इसे साहसिक और मनोरंजन का हिस्सा माना है और उन्होंने फिल्म के पक्ष में अपनी समर्थन व्यक्त की है।

फिल्म मेकर्स को विवाद के बावजूद अपनी कामकाजीता की प्रशंसा मिली है। इनके पक्ष में विद्यमान मान्यताओं में से एक यह है कि फिल्म एक कला रूप है और कला के माध्यम से समाज के मुद्दों, ऐतिहासिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं को दर्शाना एक स्वतंत्रता है। वे इसका समर्थन करते हैं कि एक फिल्म को सिनेमाटिक दृष्टिकोण से देखना चाहिए और उसे सामाजिक या धार्मिक संदेश के रूप में नहीं लेना चाहिए।

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इसके अलावा, कुछ लोग इस विवाद को सामाजिक विचार-विमर्श का माध्यम मानते हैं और इसे संविधानिक मुकाबले के संदर्भ में देखते हैं।

विवाद के अपील स्तर पर भी समर्थन व्यक्त किया है। कुछ लोग इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को विचाराधीन और संविधानिक आधार पर दुरुस्त मानते हैं और उसे मुकदमा चलाने का माध्यम समझते हैं। उन्होंने फिल्म के संवाद और अदिपुरुष के अभिनय को आपत्तिजनक माना है और इसे समाजीत की उपेक्षा का मामला समझा है। इसलिए, वे फिल्म के विरोध में अपील करने और उसे रोकने की मांग करते हैं।

फिल्म के समर्थकों का यह दावा है कि कला में स्वतंत्रता और व्यापारिकता की मिश्रण एक प्राकृतिक विषय है और इसे अवमाननीय रूप से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने इस विवाद को एक प्रोत्साहन माध्यम के रूप में देखा है, जो नई सोच, विचारधारा और समाजीकरण की ओर प्रेरित कर सकता है। इसलिए, वे फिल्म के मेकर्स की पकड़ करते हैं और उन्हें अपनी कला में स्वतंत्रता देने की मांग करते हैं।

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