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Argentina Inflacion : महंगाई की चपेट में पूरा देश: कौन से देश में है सबसे अधिक महंगाई और क्या है इसका कारण?

Argentina Inflacion :दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेंटीना एक समय था जब यह दुनिया के सबसे अमीर देशों में गिना जाता था। लेकिन आज स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है। अर्जेंटीना में महंगाई दर इतनी ऊँची हो गई है कि लोग अब खरीदारी के लिए बोरे में नोट भरकर ले जाने को मजबूर हैं।

Argentina Inflacion

Argentina Inflacion : जब अमीरी का सपना महंगाई में बदल गया

दक्षिण अमेरिकी देश अर्जेंटीना एक समय था जब यह दुनिया के सबसे अमीर देशों में गिना जाता था। लेकिन आज स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है। अर्जेंटीना में महंगाई दर इतनी ऊँची हो गई है कि लोग अब खरीदारी के लिए बोरे में नोट भरकर ले जाने को मजबूर हैं।

Argentina Inflacion : महंगाई का आलम

अर्जेंटीना में महंगाई की स्थिति इतनी गंभीर है कि आम लोग थैलियों में सामान लेकर आते हैं। रोज़मर्रा की चीज़ें भी इतनी महंगी हो गई हैं कि परिवारों को अपने बजट को लेकर चिंता करनी पड़ रही है।

आर्थिक संकट के कारण

अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था कई चुनौतियों का सामना कर रही है। सरकार की नीतियां, बढ़ती बेरोजगारी, और वैश्विक आर्थिक हालात ने मिलकर इस देश को एक संकट में डाल दिया है।

Argentina Inflacion : आर्थिक संकट और महंगाई का आलम

अर्जेंटीना, जो क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया का आठवां सबसे बड़ा देश है, कभी विश्व के शीर्ष 10 अमीर देशों में शामिल था। लेकिन आज यह देश महंगाई की चरम सीमा पर पहुँच चुका है। अप्रैल 2024 में अर्जेंटीना में महंगाई की सालाना दर 289 फीसदी पर पहुँच गई, जो इसे दुनिया में सबसे अधिक महंगाई वाला देश बना देती है।

महंगाई की तुलना

दुनिया के किसी अन्य देश में इस स्तर की महंगाई नहीं देखी गई है। तुर्की 75.45 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि वेनेजुएला 64.9 फीसदी के साथ तीसरे स्थान पर है। अर्जेंटीना की महंगाई दर का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह भारत के मुकाबले लगभग 60 गुना अधिक है। भारत में अप्रैल में खुदरा महंगाई की दर 4.83 फीसदी रही थी।

दुर्गति के कारण

कई कारण हैं जो अर्जेंटीना की इस दुर्गति के पीछे हैं। राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक नीतियों की असफलता, और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों ने मिलकर इस देश को गंभीर संकट में डाल दिया है।

Argentina Inflacion की आर्थिक यात्रा: एक समृद्धि से संकट की ओर

प्रथम विश्व युद्ध से पहले, अर्जेंटीना को दुनिया के सबसे अमीर देशों में गिना जाता था। इस देश की समृद्धि का परिचायक था मुहावरा “As rich as an Argentine,” जो उस समय के लोगों की मानसिकता को दर्शाता था। 19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में, यूरोप के कई लोगों ने बेहतर जीवन की तलाश में अर्जेंटीना का रुख किया, क्योंकि यह देश धन और संसाधनों से भरपूर था।

लोकलुभावन नीतियों का असर

हालांकि, 1946 में अर्जेंटीना में लोकलुभावन नीतियों का एक नया युग शुरू हुआ, जिसने देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर संकट में डाल दिया। राष्ट्रपति जुआन पेरोन ने 1946 से 1955 तक शासन किया, और उनके कार्यकाल में खर्च और नीतियों में असंतुलन पैदा हुआ। इसके बाद भी, 1990 के दशक में राष्ट्रपति कार्लोस मेनम ने फ्री-मार्केट सुधारों की कोशिश की, लेकिन ये प्रयास भी सफल नहीं हो सके।

आर्थिक संकट

साल 2001 के अंत में, अर्जेंटीना की स्थिति और भी बिगड़ गई। देश को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा और उसने 102 अरब डॉलर के कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट कर दिया। यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसने अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था को और भी निचले स्तर पर पहुँचा दिया।

Argentina Inflacion की आर्थिक स्थिति: गरीबी और अव्यवस्था का संकट

अर्जेंटीना की लगभग 40 फीसदी आबादी आज भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है। सरकार ने अपनी करेंसी पीसो की कीमत को डॉलर के बराबर रखने के लिए सख्त नीतियों का पालन किया है। हालांकि, पिछले दो दशकों में देश में वामपंथी सरकारें ऐसी नीतियों को लागू करने में रहीं जो आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के बजाय लोकलुभावन दृष्टिकोण को बढ़ावा देती रहीं।

शासन में बदलाव और चुनौतियाँ || Argentina Inflacion

छह महीने पहले जेवियर मिलेई बड़े वादों के साथ सत्ता में आए थे, लेकिन जनता की कठिनाइयाँ कम होने के बजाय बढ़ती जा रही हैं। पिछले एक वर्ष में, पीसो की कीमत चार गुना से अधिक गिर चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इसे सरकारी नियंत्रण से पूरी तरह मुक्त कर दिया जाए, तो इसकी कीमत और भी नीचे जा सकती है।

अमीरों की भी परेशानी

Argentina Inflacion :अर्जेंटीना की स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि देश के अमीर वर्ग को भी दो जून की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। सरकारी खजाने में नगद आरक्षित नहीं है और सरकार पर भारी कर्ज का बोझ है। इस सबके बीच, आम नागरिकों के लिए रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करना भी एक चुनौती बन चुका है।

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